चैत्र नवरात्रः दो तिथियों का संयोग कालरात्रि मां की ऐसे करें पूजा
आज चैत्र नवरात्र का सातवां दिन है। सप्तमी तिथि सुबह 10 बजकर 6 मिनट तक है इसके बाद अष्टमी तिथि लग जाएगी। लेकिन उदया तिथि के कारण सप्तमी तिथि का ही मान होगा और आज देवी के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा करना सभी प्रकार से लाभप्रद रहेगा।
देवीभाग्वत पुराण के अनुसार कालिख के समान स्वरूप के कारण ही देवी का सातवां स्वरूप कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। इनके बाल बिखरे हुए हैं और इनके गले में दिखाई देने वाली माला बिजली की भांति चमकती है। इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाला बताया गया है।
इनके तीन नेत्र हैं और चार हाथ हैं जिनमें एक में खड्ग अर्थात् तलवार है तो दूसरे में लौह अस्त्र है, तीसरे हाथ में अभयमुद्रा है और चौथे हाथ में वरमुद्रा है। इनका वाहन गर्दभ अर्थात् गधा है।
भक्तों का ऐसा विश्वास है कि मां कालरात्रि अपने भक्तों को काल से बचाती हैं अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। पुराणों में इन्हें सभी सिद्धियों की भी देवी कहा गया है, इसीलिये तंत्र-मंत्र के साधक इस दिन देवी की विशेष रूप से पूजा-अर्चना करते हैं।
देवी कालरात्रि की पूजा करते समय इस मंत्र से ध्यान करना चाहिए। एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी। वामपादोल्लसल्लोह, लताकंटकभूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी।।
अर्थात् एक वेणी (बालों की चोटी) वाली, जपाकुसुम (अड़हुल) के फूल की तरह लाल कर्ण वाली, उपासक की कामनाओं को पूर्ण करने वाली, गर्दभ पर सवारी करने वाली, लंबे होठों वाली, कर्णिका के फूलों की भांति कानों से युक्त, तैल से युक्त शरीर वाली, अपने बाएं पैर में चमकने वाली लौह लता धारण करने वाली, कांटों की तरह आभूषण पहनने वाली, बड़े ध्वजा वाली और भयंकर लगने वाली कालरात्रि मां हमारी रक्षा करें।
इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत, प्रेत, राक्षस, दानव और सभी पैशाचिक शक्तियां भाग जाती हैं। माना जाता है कि सप्तमी तिथि के दिन इनकी पूजा करने वाले साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित होता है। इनकी पूजा में गुड़ के भोग का विशेष महत्व है। गुड़हल और गुड़ के अर्पण से माता प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामना पूर्ण करती हैं।