जब राजनाथ सिंह ने 23 नवंबर 2025 को दिल्ली में एक सिंधी समाज कार्यक्रम में कहा, "कौन जानता है कल सिंध भारत में वापस आ जाए"—तो कमरे में एक लंबा सांस रुक गया। यह बयान कोई अचानक बात नहीं थी। यह एक ऐसी संस्कृति की याद दिलाने वाली बात थी, जिसे लोग भूलने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन दिल में अभी भी धड़क रही थी। सिंध का नाम सुनते ही आंखें भर आती हैं—उस नदी की याद, जिसके किनारे वैदिक ज्ञान और सूफी संगीत एक साथ बहते थे। आज वह नदी पाकिस्तान के अंदर है, लेकिन उसकी धूल अभी भी हमारे घरों में है।
सिंध की यादें, जो बॉर्डर से नहीं मिटतीं
रक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया कि भूगोल बदल सकता है, लेकिन संस्कृति नहीं। उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के शब्दों का हवाला दिया—जिन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा था कि सिंधी हिंदू अभी भी 1947 के विभाजन को अपनी जड़ों से अलग नहीं कर पाए। वह जमीन जो छूट गई, वो अब भी उनके घरों में बैठी है—माँ के गीतों में, बच्चों के नामों में, और उन चाय के कप में जिसमें अभी भी सिंधु नदी का स्वाद है।
सिंधु नदी को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। लेकिन यह बात कम जानी जाती है कि पाकिस्तान के कई मुसलमान भी इस नदी को आब-ए-जमजम जितना पवित्र मानते थे। उनके बच्चे अभी भी इस नदी के किनारे जन्म लेते हैं। उनके दादा-दादी उसे गंगा के समान पूजते थे। इसलिए राजनाथ सिंह का बयान कोई राजनीतिक बात नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक याद थी।
PoK: बिना गोली के वापसी की उम्मीद
इसी कार्यक्रम में उन्होंने पाकिस्तान कब्जे वाला कश्मीर (PoK) के बारे में भी कहा: "यह बिना किसी आक्रामक कदम के हमारा हो जाएगा।" यह बात उन्होंने मोरक्को में भारतीय समुदाय से बातचीत के दौरान भी कही थी। उनका मानना है कि वहां के लोग अपनी आजादी की मांग कर रहे हैं—न केवल भारत के लिए, बल्कि अपने आप के लिए।
2020 के बाद से PoK में आवाजें बढ़ रही हैं। लोग अब सिर्फ भारत के साथ नहीं, बल्कि पाकिस्तान के केंद्रीय शासन के खिलाफ भी बोल रहे हैं। वहां के लोग कहते हैं—"हम न तो पाकिस्तानी हैं, न ही भारतीय। हम तो कश्मीरी हैं।" राजनाथ सिंह का बयान इसी आवाज को दर्शाता है। वह एक सैन्य विकल्प नहीं, बल्कि एक राजनीतिक भविष्य की ओर इशारा करता है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: भ्रम या खतरा?
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस बयान को "भ्रम से भरा और खतरनाक बदलाव की मांग" कहकर निंदा कर दी। उन्होंने कहा कि यह भारत के दृष्टिकोण को दोहराने की कोशिश है—जिसमें कश्मीर को अपना दावा करने की बात की जाती है। लेकिन यहां एक बात छूट रही है: राजनाथ सिंह ने कभी कश्मीर के लोगों के विरुद्ध कुछ नहीं कहा। उन्होंने कहा कि PoK के लोग खुद आवाज उठा रहे हैं।
सिंध प्रांत में भी एक राष्ट्रवादी आंदोलन है—सिंधी राष्ट्रवादी संगठन—जो पाकिस्तान को "आंतरिक उपनिवेशवाद" कहता है। वे कहते हैं कि पंजाबी शासन यहां के पानी, बिजली और खेती के संसाधनों का दोहन करता है, लेकिन सिंधी भाषा, संस्कृति और शिक्षा को नहीं बचाता। यहां के लोग भी अपनी पहचान बचाना चाहते हैं। राजनाथ सिंह का बयान इसी भावना को अनजाने में छू गया।
क्या यह सिर्फ भावना है, या भविष्य की नींव?
23 नवंबर की रात 9:11 PM IST पर जब यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो सिंधी समुदाय ने इसे एक उत्सव की तरह मनाया। लोगों ने फोटो शेयर कीं—पुराने सिंधी घरों की, जहां अभी भी जमीन पर जानवरों के निशान हैं, जो उनके दादाजी के समय के थे। एक वृद्धा ने कहा: "मैंने अपने बच्चों को सिंध के नाम दिए। अब मुझे लगता है, वो नाम एक दिन वापस आएंगे।"
इतिहास में सीमाएं बदल चुकी हैं। जर्मनी टूटी थी, फिर एक हुई। यूगोस्लाविया टूटी, फिर नए देश बने। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमा भी एक दिन बदल सकती है। लेकिन यह बदलाव गोली या तोप से नहीं, बल्कि लोगों के दिलों से होगा। राजनाथ सिंह ने वही कहा—"कौन जानता है?"
क्या यह बयान भारत की नीति बन जाएगा?
अभी तक सरकार ने इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन यह बयान निश्चित रूप से एक नए राजनीतिक अंतर की शुरुआत है। जब एक रक्षा मंत्री बोलते हैं कि "सीमाएं बदल सकती हैं", तो यह एक संकेत है—कि भविष्य की राजनीति अब सिर्फ सैन्य नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक यादों पर आधारित होगी।
Frequently Asked Questions
क्या राजनाथ सिंह का बयान भारत की आधिकारिक नीति है?
नहीं, यह एक व्यक्तिगत बयान है और अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। हालाँकि, इस तरह के बयान आमतौर पर सरकार के दृष्टिकोण की ओर इशारा करते हैं। राजनाथ सिंह के बयान ने सिंधी समुदाय और PoK के लोगों के बीच एक भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाया है, जिसे राजनीति में अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सिंधी हिंदू आज कहाँ रह रहे हैं?
1947 के बाद लगभग 90% सिंधी हिंदू भारत आ गए। आज वे मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और दिल्ली में बसे हुए हैं। मुंबई के बाद सबसे बड़ा सिंधी समुदाय अहमदाबाद में है। उनकी भाषा, संस्कृति और व्यापारिक नेटवर्क आज भी भारत की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाते हैं।
पाकिस्तान में सिंध प्रांत की स्थिति कैसी है?
सिंध पाकिस्तान का सबसे बड़ा और जनसंख्या वाला प्रांत है, लेकिन यहां के लोगों को अक्सर राजनीतिक और आर्थिक रूप से नजरअंदाज किया जाता है। पंजाब के केंद्रीय शासन ने सिंध के पानी के संसाधनों का दोहन किया है। सिंधी भाषा को शिक्षा में अनुदान नहीं मिलता, जिससे सांस्कृतिक विलय का खतरा है।
PoK में लोगों की आवाजें क्यों बढ़ रही हैं?
PoK में लोगों को पाकिस्तानी सेना और अखिल भारतीय राष्ट्रीय संगठन के नियंत्रण में रखा गया है। वहां के लोग अपनी भाषा, संस्कृति और शिक्षा के लिए लड़ रहे हैं। 2023 के बाद से वहां के युवा अपनी पहचान को भारतीय से जोड़ने की ओर बढ़ रहे हैं—खासकर जब वे भारतीय मीडिया या सोशल मीडिया के जरिए अपने जड़ों को देखते हैं।
क्या सिंध का भारत में शामिल होना संभव है?
अभी कानूनी और सैन्य रूप से यह संभव नहीं है। लेकिन ऐतिहासिक रूप से, सीमाएं बदल चुकी हैं। यूरोप में बर्लिन की दीवार गिरी, अफ्रीका में कॉलोनियल सीमाएं बदलीं। यदि सिंधी समुदाय अपनी सांस्कृतिक पहचान को बरकरार रखता रहा, तो एक दिन राजनीतिक बदलाव की बात भी सामने आ सकती है।
इस बयान से भारत-पाकिस्तान संबंधों पर क्या असर होगा?
अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं हुई है, लेकिन पाकिस्तान इसे एक राजनीतिक चुनौती के रूप में ले सकता है। दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है, खासकर अगर भारत की ओर से इस बयान को और आगे बढ़ाया जाए। लेकिन यह बयान एक नई बातचीत की शुरुआत हो सकता है—जहां संस्कृति, इतिहास और लोगों की भावनाएं राजनीति का हिस्सा बनें।