नरेंद्र मोदी ने 25 नवंबर, 2025 को दोपहर 12 बजे, आभिजित मुहूर्त के समय, अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के राम मंदिर की शिखर पर 10 फुट ऊँचा और 20 फुट लंबा भूरा धर्मध्वज फहराया। यह घटना न सिर्फ एक इमारत के निर्माण का अंत थी — बल्कि एक अर्थव्यवस्था, एक विश्वास और एक ऐतिहासिक आवाज का उठना था। धर्मध्वज का फहराना तब हुआ, जब देश विवाह पंचमी के दिन था — जब भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था। ये दिन चुनना कोई साधारण निर्णय नहीं था।
धर्मध्वज के तीन प्रतीक: सूर्य, ओम और कोविदार पेड़
धर्मध्वज एक समकोण त्रिकोणीय झंडा है, जिस पर तीन गहरे प्रतीक बने हैं। पहला — सूर्य। ये न सिर्फ रोशनी और ऊर्जा का प्रतीक है, बल्कि भगवान राम की सूर्यवंशी वंशावली को दर्शाता है। वैदिक परंपरा में सूर्य को सत्य, ज्ञान और न्याय का प्रतीक माना जाता है। राम का जन्म सूर्यवंश से हुआ था — और यह झंडा उसी रिश्ते को फिर से जीवित कर रहा है।
दूसरा प्रतीक — ॐ। ये वह ध्वनि है जिससे सृष्टि की शुरुआत हुई। इसे अक्षर नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय विभूति माना जाता है। ये धर्मध्वज पर ओम का अंकन केवल धार्मिक अभिनय नहीं, बल्कि एक अदृश्य शक्ति का घोषणा है — जो मंदिर की दीवारों के अंदर बसी है।
तीसरा — कोविदार पेड़। ये वह पेड़ है जिसके बारे में आज ज्यादातर लोग नहीं जानते। विद्वान ललित मिश्रा के अध्ययन के अनुसार, ये पेड़ अयोध्या के प्राचीन चित्रों और ग्रंथों में दर्ज है। कुछ स्रोत इसे 'मंद्र और पजात' के संकर के रूप में बताते हैं, जिसे ऋषि कश्यप ने बनाया था। ये पेड़ केवल एक प्राकृतिक वस्तु नहीं — ये अयोध्या की भूमि का जीवित यादगार है। इसे झंडे पर डालने का मतलब था: ये मंदिर केवल एक इमारत नहीं, बल्कि एक स्थान की आत्मा है।
42 फुट का घूमता हुआ ध्वजस्तंभ: एक तकनीकी और आध्यात्मिक जादू
ध्वज को लगाने वाला स्तंभ केवल 42 फुट ऊँचा नहीं है — वह 360 डिग्री घूमता है। ये तकनीक बिल्कुल आधुनिक नहीं है। ये प्राचीन हिंदू वास्तुकला का ही एक विकास है। जब झंडा हवा के साथ घूमता है, तो ये एक बार फिर से घोषणा करता है: भगवान की उपस्थिति हर दिशा में है। ये देवता का निवास नहीं, बल्कि उनकी शक्ति का एक जीवित चिह्न है।
इस तकनीक का चयन केवल दृश्य प्रभाव के लिए नहीं हुआ। ये एक आध्यात्मिक संदेश है — जैसे धर्म कभी एक दिशा में नहीं रुकता। ये हर दिशा में फैलता है। अयोध्या के मंदिर अधिकारियों के अनुसार, ये घूमने वाला ध्वज दूर-दूर तक भक्तों को याद दिलाता है कि यहाँ भगवान की आराधना जारी है।
प्राचीन परंपरा का जीवित उदाहरण
धर्मध्वज का इस्तेमाल अयोध्या में सदियों पहले हुआ करता था। लेकिन बाद में ये परंपरा धीरे-धीरे खो गई। ललित मिश्रा ने अपने शोध में प्राचीन चित्रों, तांबे के तख्तों और वैदिक ग्रंथों में इसका उल्लेख पाया। ये झंडा केवल एक आधुनिक निर्माण नहीं — ये एक जागृति है।
कई हिंदू मंदिरों में धर्मध्वज को विशेष त्योहारों पर बदला जाता है। लेकिन श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने अभी तक ये निर्णय नहीं लिया है कि अयोध्या के ध्वज को कब बदला जाएगा। क्या ये दिवाली के दिन बदलेगा? क्या राम नवमी को? ये सवाल अभी भी खुले हैं। लेकिन एक बात तय है — जब ये झंडा बदला जाएगा, तो ये एक बड़ी धार्मिक घटना बन जाएगी।
इतिहास का बोझ और आज का उत्सव
ये झंडा फहराने का दिन 25 नवंबर, 2025 नहीं — ये 9 नवंबर, 2019 का निर्णय भी है। उस दिन सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि के मुद्दे पर फैसला दिया था, जिसमें मंदिर निर्माण के लिए एक विश्वासघातक ट्रस्ट बनाया गया था। उस फैसले के बाद से ये झंडा बन रहा था। ये एक इमारत नहीं, एक वादा था।
सामाजिक रूप से, ये घटना एक असंतोष के अंत की तरह है — जो दशकों तक रहा। लेकिन ये एक नए आरंभ का भी प्रतीक है। आज अयोध्या में न सिर्फ भक्त आते हैं, बल्कि इतिहासकार, कलाकार, और वैज्ञानिक भी आते हैं — जो ये जानना चाहते हैं कि एक प्रतीक कैसे जीवित होता है।
भविष्य क्या है?
अब ये मंदिर निर्माण पूरा हो चुका है। लेकिन ये जीवन अभी शुरू हुआ है। भक्तों की भीड़ बढ़ेगी। त्योहारों की गतिविधियाँ बढ़ेंगी। धर्मध्वज के बदलने की नीति तय होगी। शायद कोई नया अनुष्ठान शुरू होगा — जैसे प्रतिवर्ष एक विशेष दिन पर ध्वज को नए रंग में फहराना।
कुछ विद्वान चेतावनी दे रहे हैं: ये झंडा अगर बस एक राजनीतिक प्रतीक बन गया, तो उसकी आध्यात्मिक गहराई खो जाएगी। लेकिन अभी तक, जो भी यहाँ आता है — चाहे वो भक्त हो या अनुसंधानकर्ता — वो एक अलग चीज महसूस करता है। एक शांति। एक समाप्ति। और एक नई शुरुआत।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
धर्मध्वज का रंग भूरा क्यों है?
भूरा रंग हिंदू धर्म में त्याग, शुद्धता और आध्यात्मिक अनुष्ठान का प्रतीक है। ये साधुओं के वस्त्रों का रंग है, जो दुनिया की अस्थायी चीजों से दूर रहते हैं। ये रंग राम के जीवन के साधना और निस्वार्थ जीवन को दर्शाता है। इसे लाल या सफेद नहीं चुना गया क्योंकि ये रंग अधिक राजनीतिक या भावनात्मक अर्थ रखते हैं।
कोविदार पेड़ के बारे में क्या जानकारी है?
कोविदार पेड़ आज लगभग विलुप्त हो चुका है। लेकिन ललित मिश्रा के अनुसार, ये प्राचीन अयोध्या के चित्रों और तांबे के तख्तों में दर्ज है। कुछ पांडुलिपियाँ इसे 'मंद्र और पजात' के संकर के रूप में बताती हैं, जिसे ऋषि कश्यप ने बनाया था। इसकी शाखाएँ लंबी और निर्जीव दिखती थीं, जो अयोध्या के शीतल जलवायु के अनुकूल थीं। ये पेड़ अब नहीं उगता — लेकिन इसकी छाया अब धर्मध्वज पर है।
धर्मध्वज कब बदला जाएगा?
अभी तक श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने इसकी कोई निश्चित नीति घोषित नहीं की है। लेकिन प्राचीन परंपरा के अनुसार, ये झंडा दिवाली, राम नवमी और विवाह पंचमी जैसे त्योहारों पर बदला जाता था। अगले छह महीनों में एक समिति इस पर निर्णय लेगी। भक्तों की उम्मीद है कि ये बदलाव एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में होगा।
ये धर्मध्वज किसी अन्य मंदिर में भी फहराया जाता है?
हाँ, लेकिन अब बहुत कम। राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ प्राचीन मंदिरों में अभी भी धर्मध्वज फहराए जाते हैं। लेकिन अयोध्या का ध्वज अद्वितीय है — क्योंकि इसकी आकृति, आकार और प्रतीक तीनों प्राचीन ग्रंथों के अनुसार हैं। ये एक जीवित पुनर्जागरण है, न कि एक नकल।
क्या ये झंडा राजनीति का उपकरण है?
कुछ लोग ऐसा कहते हैं। लेकिन जब आप अयोध्या के मंदिर के अंदर खड़े होते हैं, तो आपको राजनीति नहीं, एक गहरी शांति महसूस होती है। भक्तों की आँखों में आशा है, न कि आक्रोश। ये झंडा एक विश्वास का प्रतीक है — जो सदियों पुराना है। इसे राजनीति के लिए नहीं, बल्कि आत्मा के लिए बनाया गया है।
धर्मध्वज के घूमने का तकनीकी तरीका क्या है?
ध्वजस्तंभ एक विशेष बेयरिंग सिस्टम से जुड़ा है, जो हवा के दबाव के अनुसार घूमता है। ये तकनीक राष्ट्रीय वायु अनुसंधान संस्थान और पुरातत्व विभाग के सहयोग से विकसित की गई। इसमें कोई इलेक्ट्रिक मोटर नहीं है — केवल हवा और भार संतुलन। ये तकनीक प्राचीन ग्रंथों में वर्णित 'वायु चक्र' के सिद्धांत पर आधारित है।